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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

अगर बरसात के कारण फसल हो गई है चौपट, तो ऐसे करें अपना बीमा क्लेम

अगर बरसात के कारण फसल हो गई है चौपट, तो ऐसे करें अपना बीमा क्लेम

बदलते हुए मौसम के कारण आजकल मानसूनी गतिविधियों में तेजी से बदलाव आ रहा है, अब कहीं जरुरत से ज्यादा बरसात हो रही है तो कहीं सूखे का सामना करना पड़ रहा है। अगर इस साल भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई जिलों में सामान्य से ज्यादा बरसात रिकॉर्ड की गई है, जिसके कारण आम लोगों के साथ-साथ किसानों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस दौरान बहुत सारे किसानों की कई एकड़ फसलें पानी में डूब गईं, जिसके कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ है। किसानों को होने वाले नुकसानों को देखते हुए भारत सरकार ने किसानों के हित में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की थी, जिसके अंतर्गत किसान अपनी फसल का मामूली प्रीमियम भरकर बीमा करवा सकते हैं। अगर उनकी फसल किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा की वजह से खराब हो जाये या पूरी तरह से नष्ट हो जाए, तो किसान संबंधित बीमा कम्पनी से अपनी फसल के बीमा का क्लेम भी मांग सकते हैं, जिसके बाद संबंधित बीमा कंपनी किसान को हुए नुकसान की भरपाई करेगी।


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क्या है कृषि बीमा करवाने की प्रक्रिया

कृषि बीमा करवाना बेहद आसान है। इसके लिए किसानों को किसी भी बैंक या बीमा कंपनी के बार-बार चक्कर लगाने की जरुरत नहीं है। यदि किसानों के पास किसान क्रेडिट कार्ड है या किसी किसान ने बैंक से पहले से ही लोन ले रखा है, तो उनके लिए यह प्रक्रिया और भी ज्यादा आसान हो जाती है। बीमा करवाने के लिए किसान को बैंक में जाकर एक फॉर्म भरना होगा, जिसके बाद फॉर्म के साथ आधार कार्ड, जमीन से संबंधित कागजात और वोटर आईडी की फोटो कॉपी लगानी होगी, इसके साथ ही पटवारी द्वारा जारी खेत में बोई गई फसल का ब्यौरा भी जमा करना होगा। यह सब बैंक में या बीमा कम्पनी में जमा करने के बाद किसान का बीमा बेहद आसानी से हो जाएगा।

कैसे क्लेम करें कृषि बीमा की राशि ?

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कृषि बीमा दो प्रकार से क्लेम किया जा सकता है, पहले में यदि फसल पूरी तरह से खराब हो जाये या नष्ट हो जाये तो किसान फसल बीमा का क्लेम कर सकता है। और दूसरे में यदि किसान की फसल आंशिक रूप से खराब हो जाये या कम मात्रा में खराब हो तो भी किसान फसल बीमा का क्लेम कर सकता है। यदि फसल किसी प्राकृतिक आपदा से नष्ट होती है, जैसे - बाढ़, भीषण बरसात, ओले गिरना इत्यादि तो किसान को यह क्लेम लेने के लिए संबंधित बैंक या बीमा कंपनी में आवेदन करना पड़ता है। इसके साथ ही किसान को 72 घंटों के भीतर प्राकृतिक आपदा की वजह से नष्ट हुई फसल की जानकारी कृषि विभाग को देना अनिवार्य होता है। इस जानकारी में बीमा की फोटो कॉपी के साथ ही फसल का पूरा ब्योरा फॉर्म में भरना पड़ता है। वहीं यदि किसान की फसल आंशिक रूप से खराब हुई तो किसान को इसकी जानकारी कहीं देने की जरुरत नहीं है। बीमा कम्पनी या बैंक से सिर्फ क्लेम करने पर, सम्बंधित बैंक या बीमा कम्पनी नुकसान की राशि किसान के बैंक खाते में जमा कर देती हैं।


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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अन्तर्गत सभी फसलों के नष्ट होने पर अलग-अलग बीमा राशि सम्बंधित बैंक या बीमा कम्पनी के द्वारा किसानों को दी जाती है। उदाहरण के लिए - यदि किसान की कपास की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई है, तो किसान को 36,282 रुपये प्रति एकड़ की दर से बीमा राशि मिलेगी। वहीं अगर किसान ने अपने खेत में धान बोया है और धान की खेती प्राकृतिक आपदा की वजह से नष्ट हो गई है, तो किसान को 37,484 रुपये प्रति एकड़ की दर से बीमा राशि मिलेगी। इसी तरह से बाजरा, मक्का और मूंग की फसल के लिए क्रमशः 17,639 रुपये, 18,742 रुपये और 16,497 रुपये प्रति एकड़ की दर से किसानों को बीमा राशि प्रदान की जाएगी।
भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इन राज्यों में बढ़ सकता है बारिश और ठंड का प्रकोप

भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इन राज्यों में बढ़ सकता है बारिश और ठंड का प्रकोप

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली एक एजेंसी है। यह मौसम और मौसम के पूर्वानुमान से जुड़ी हुई सभी तरह की जानकारी हमें बताता है। हाल ही में मौसम विभाग द्वारा कुछ राज्यों को लेकर अपडेट दी गई है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार पहाड़ी इलाकों में अगले 2 दिन तक शुष्क मौसम रहने की संभावना है। साथ ही, यहां तापमान 2 डिग्री तक कम हो सकता है। पहाड़ों में तापमान कम होने का सीधा असर उत्तर भारत पर पड़ता है और यह कम तापमान उत्तर भारत में पाले की स्थिति ला सकता है। हम आए दिन खबरों में पढ़ रहे हैं कि उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में ठंड बढ़ती ही जा रही है और लोग इससे बचने के लिए अलाव का सहारा ले रहे हैं। अगर मौसम विभाग की मानें तो लोगों की परेशानियां थोड़ी और बढ़ने वाली हैं क्योंकि आने वाले समय में पहाड़ों पर बर्फ गिरने की संभावना है। पहाड़ों पर बर्फ गिरने का सीधा असर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों पर देखने को मिलेगा। दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि में बुधवार को घना कोहरा रिकॉर्ड किया गया। इसके अलावा ऐसे मौसम में दिल्ली में प्रदूषण और हवा का स्तर भी बेहद खराब हो जाता है, जो वहां पर रहने वाले लोगों के लिए एक मुसीबत का कारण बन जाता है। इसके अलावा मौसम विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार दक्षिणी भारत के कुछ राज्यों में हल्की बारिश होने की संभावना भी है। इस समय पर होने वाली बारिश रबी की फसल के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकती है।

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बारिश और ठंड से बढ़ेगी इन राज्यों की परेशानी

अगर मौसम विभाग की रिपोर्ट की मानें तो बिहार में अगले कुछ समय में तापमान में बहुत ज्यादा गिरावट आने वाली है। अगले 48 घंटों में यहां पर तापमान में दो से चार डिग्री की गिरावट आ सकती है। फिलहाल, बिहार के विभिन्न शहरों में न्यूनतम तापमान 10 से 14 डिग्री सेल्सियस के बीच है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अगले 4-5 दिनों में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और लक्षद्वीप में छिटपुट से मध्यम बारिश होने की उम्मीद है।

क्या रहेगा हिमाचल और उत्तराखंड का हाल

हिमाचल प्रदेश में 3 दिसंबर तक मौसम साफ रहने की उम्मीद है। 3 दिसंबर के बाद यहां पर हल्की-फुल्की बारिश होने की संभावना जताई गई है। इस साल नवंबर के महीने में पहाड़ी इलाकों में कम बारिश होने के कारण फसलों पर काफी बुरा असर दिखाई दिया था। इसके अलावा उत्तराखंड में 2 दिन मौसम शुष्क रहने के बाद दो से 3 डिग्री तक तापमान गिरने की संभावना है। जहां अधिकतम तापमान 25.3 रहने की संभावना है और यहां पाले से फसल पर भी असर देखने को मिलेगा।
जानें आने वाले सप्ताह में बुलंदशहर का मौसम कैसा रहने वाला है

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान के अनुसार तीसरे और चौथे दिन ही बादल छाये रहेंगे और शेष दिनों में आसमान साफ रहेगा। लेकिन बारिश की कोई संभावना नहीं है। अधिकतम और न्यूनतम 25.0-26.0 और 8.0-10.0 डिग्री सेल्सियस के बीच है। सापेक्ष आद्रता अधिकतम और न्यूनतम सीमा 35-41 और 19-23% के बीच है। हवाओं की दिशा उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व और हवाओं की गति 3.9- 14.4 किमी प्रति घंटा रहने की संभावना है। किसानों को सलाह दी जाती है कि विलंब से बोई जाने वाली गेंहू एवं चना की बुवाई तथा फसलों और सब्जियों की सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। रबी के मौसम में बोई जाने वाली फसलें जैसे - गेंहू चना की बुवाई बीजोपचार करने के बाद ही करें। लंपी वायरस बचाव के उपाय :- लंपी रोग संभावित पशुओं को अलग रखें । मक्खी, मच्छर, जूं को मार दें। पशु की मृत्यु होने के बाद शव को खुला छोड़ दें। इस रोग से प्रभावित पशुओं में बकरी पॉक्स वैक्सीन का उपयोग चिकित्सक के निर्देश पर कर सकते हैं। प्रभावित पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मल्टी विटामिन दवाई दी जा सकती हैं। साथ ही, संक्रमण की रोकथाम हेतु टीकाकरण अवश्य करायें।

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फसल संबंधित जानकारी

गेंहू

समय से बोई गई गेंहू की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद तथा ऊसर भूमि में बुवाई के 28-30 दिन बाद (ताजमहल अवस्था) पर ही सिंचाई अवश्य करें। गेंहू की फसल में यदि सकरी व चौड़ी पत्ती वाले, दोनों प्रकार के खरपतवार दिखाई दे तो इसके नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फोरुन ७५% डब्लूपी ३३ ग्राम/हैक्टेयर या मेट्रीब्यूजिन 70%डब्लूपी 250 ग्राम/ हैक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। मौसम के दृष्टिगत सिंचित दशा में विलंभ से बोई जाने वाली गेंहू की संतुति प्रजाति मालवीय-234, यू.पी.-2338, के.-7903, के.-1902, के.-9533, एन.डी.-2643, एच.पी.-1744, एन.डू.-1014, यू.पी.-2425 , डी.बी.डू.-14, पी.बी.डू.-524, एन.डू.-510, एन.डू.-1076 आदि में से किसी एक प्रजाति की बुवाई का कार्य उचित नमी पर करें।

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सरसों

सरसों की फसल की बुवाई के 15-20 के अंदर निराई-गुड़ाई करने के साथ ही पौध से पौध की आपसी दूरी 10-15 सेंटीमीटर कर लें। आगामी सप्ताह में वर्षा की कोई संभावना नहीं है। अतः इस दशा में समय से बोई गई सरसों की फसल नत्रजन की शेष बची हुई मात्रा की टॉपड्रेसिंग पहली सिचाई (बुवाई के 30-35 दिन के बाद) उपयुक्त नमी पर करें। सरसों की फसल में आरा मक्खी और बालदार सुंडी कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। अतः इसके रोकथाम हेतु इमामेन बजोएट 5 % एस जी 200 ग्राम / हैक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

चना

समय से बोई गई चने की फसल यदि 15-20 सेंटीमीटर की हो गई हो तो फसल की खुटाई करें। चने की फसल में कटुआ (कटवम) कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। इसके रोकथाम हेतु क्लोरपाइरीफोस 50% ईसी + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी 2.0 लीटर/ हैक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। चना की फसल में निराई - गुड़ाई का कार्य बुवाई से 30-35 दिन के बाद करें।
सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान के अनुसार, आने वाले दिनों में हल्के से मध्यम बादल छाए रहने के कारण हल्की बारिश की संभावना है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान 22.8-25.1 और 8.0-11.8 डिग्री सेल्सियस के बीच है। सापेक्ष आर्द्रता अधिकतम और न्यूनतम सीमा 70-95 और 40-70% के बीच है। हवाओं की दिशा पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और हवाओं की गति 6.3-11.9 किमी प्रति घंटा रहने की संभावना है। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू, सरसों, सों चना, मटर आदि फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों के लिए अलग-अलग अथवा उपकरणों को साफ पानी से धोकर ही प्रयोग करें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों का छिड़काव हवा के विपरीत दिशा में खड़े होकर छिड़काव या बुरकाव न करें। छिड़काव यथा सम्भव हो तो सायंकाल के समय करें, छिड़काव के बाद खाने-पिने से पूर्व हाथों को साबुन या हैंडवाश से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए तथा कपड़ो को धोकर नहा लेना चाहिए।

फसल व बागवानी से जुड़ी जानकारी

  1. गेंहू

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू की फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। बिलम्ब से बोई गई गेहूं की फसल में यदि सकरी व चौड़ी पत्ती वाले, दोनों प्रकार के खरपतवार दिखाई दें। तो इसके नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फुरान 75% डब्लू पी ३३ ग्राम/हेक्टेयर या मैट्री ब्यूजिन 70 %डब्लू पी 250 ग्राम / हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
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  1. सरसों

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे सरसों की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दे। आसमान में लगातार बादल छाए रहने के कारण सरसों की फसल में माँहू, चित्रित वग एवं पत्ती सुरंगक कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। अतः इसके रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास 20 % ईसी 1.0 लीटर/हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36 % एस.एल. की 500 मिली० /हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. चना

समय से बोई गई चने की फसल में खुटाई का कार्य रोक दें। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे चने की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कटुआ (कटवर्म) कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। इसके रोकथाम हेतु क्लोरपाइरीफोस 50% ईसी + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी 2.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. आलू

वातावरण में नमी बढ़ने/बादल छाये रहने और तापक्रम गिरने से आलू की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है। अतः इसके रोकथाम हेतु मैंको मैं जेब या रिडोमिल २.५ ग्राम/लीटर पानी अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड ३.० ग्राम/लीटर पानी का में घोल बनाकर १२-१५ दिन के अन्तराल पर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें। आलू की फसल में सिचाई का कार्य स्थगित कर दें ।

पशु संबंधित सलाह

वर्तमान मौसम को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे पशुओं को ठंड से बचाने के लिए सुबह-शाम पशुओं के ऊपर झूल डालें। जानवरों को रात के दौरान खुले में न बांधें और रात में खिड़कियों और दरवाजों पर जूट के बोरे के पर्दे लगाएं और दिन के दौरान धूप में पर्दे हटा दें। पशुओं को हरे और सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें। पशुओ को साफ एवं ताजा पानी दिन में ३-४ बार अवश्य पिलायें। पशुओं को साफ-सुथरे स्थान पर रखें।
जानें इस साल मानसून कैसा रहने वाला है, किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा या नुकसानदायक

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मौसम विभाग ने किसानों के लिए मौस्मिक पूर्वानुमान जारी किया है। इसकी वजह से किसानों की चिंता भी काफी बढ़ गई है। मोैसमिक अनिश्चिताओं की वजह से किसानों की धड़कनें थम गई हैं। 

विगत फरवरी और मार्च माह में भी किसान बेहद हताश नजर आए थे। स्काईमेट (Skymet) की तरफ से एल नीनो के खतरे की ओर इशारा करते हुए भारत में इस वर्ष सामान्य से भी कम मानसून वर्षा होने की आशंका जताई गई है।

आजकल संपूर्ण विश्व में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव साफ तौर पर दिखाई देने लगे हैं। इस वर्ष भारत में फरवरी-मार्च माह से ही मौसमिक रुझान काफी बेकार नजर आ रहा है। 

फरवरी माह में आकस्मिक रूप से तापमान में वृद्धि तो मार्च के माह में कई दिनों तक निरंतर बेमौसम बरसात देखने को मिली है। यह मौसमिक अनियमितता खेती-किसानी के लिए बिल्कुल सही नहीं है। 

इस वर्ष मानसून को लेकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं प्राइवेट फॉरकास्टर स्काईमेट ने पूर्वानुमान जारी कर दिया है। 

आईएमडी द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमान के अनुरूप इस वर्ष भारत में मानसून लगभग सामान्य ही रहेगा। इससे किसान भाइयों को काफी राहत मिलेगी एवं कृषि उत्पादन की चिंता भी खत्म हो जाएगी। 

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मौसमिक पूर्वानुमान क्या कहता है

आईएमडी के अनुसार, जून-सितंबर की समयावधि के अंतर्गत बारिश की संभावना औसत से 96% प्रतिशत होने की आशंका है। 

भारत में जून से चार माह तक 50 वर्ष के औसत मतलब कि सामान्य 87 सेंटीमीटर वर्षा होने की संभावना है, जो 96% और 104% के मध्य रहेगी। 

इसके साथ-साथ मौसम विभाग द्वारा उत्तर पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्र, पश्चिम-मध्य भारत के कुछ भागों एवं उत्तर पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से भी कम बरसात होने का अनुमान जताया जा रहा है। 

निजी फॉरकास्टर स्काईमेट द्वारा भी इसी तरह का पूर्वानुमान जारी किया है। जिसने अलनीनो का हवाला देते हुए सोमवार को मानसून पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा है, कि इस वर्ष भारत में मानसून की बारिश सामान्य अथवा उससे कम ही रहेगी।

मई में मौसम कैसा रहने वाला है

मई माह के दौरान भारत का तापमान काफी गर्म और 28°C से 33°C के मध्य होता है। मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार मई माह के दौरान गर्म तापमान और बारिश होने की भी संभावना जताई जा रही है। 

तापमान एवं नमी के संयोजन के परिणामस्वरूप नम दिन हो सकते हैं, इस वजह से गर्मी और बारिश दोनों होने की आशंका जाहिर की गई है।

क्या वर्षा सामान्य से कम होने की आशंका है

स्काईमेट के वेदर सर्विसेज के अनुरूप आने वाले मानसून सीजन में जून से सिंतबर के मध्य 94 % फीसद वर्षा होनी है। इसके चलते भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में गर्म जल की वजह से अल नीनो घटना विश्वभर में मौसम के मिजाज पर काफी असर ड़ाल सकती है। 

विशेष रूप से भारत में अल नीनो शुष्क परिस्थितियों एवं कम बारिश को दर्शाता है। इस पर आईएमडी ने कहा है, कि अलनीनो के प्रभावों को मानसून के मौसम मतलब कि वर्ष के दूसरे छमाही में अनुभव किया जा सकता हैं। 

हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है, कि समस्त अलनीनो खराब वर्षा का संकेत नहीं होती हैं। मानसून हेतु सर्वोत्तम स्थिति अलनीना होती है,जो भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में परिवर्तित हो चुकी है।

क्या यह खेती किसानी को प्रभावित करेगी ?

हालाँकि, सामान्य अथवा औसत वर्षा कृषि क्षेत्र हेतु राहत का संकेत है। परंतु, किसी कारण वश मानसून में कमी आती है, तो किसान भाइयों को अच्छी पैदावार लेने के लिए सिचाई साधन हेतु कृत्रिम संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

आजकल आधुनिक तकनीकों के बावजूद भी भारत की अधिकांश कृषि मौसम पर ही निर्भर रहती है। भारत के कृषि क्षेत्र से करोड़ों की जनसँख्या का भरण-पोषण सुनिश्चित होता है। 

परंतु, राष्ट्र की 60 फीसदी आबादी स्वयं का जीवन यापन करने के लिए खेती-किसानी से जुड़ी हुई है। यह अर्थव्यवस्था के 18 प्रतिशत भाग को दर्शाती है, जो कि बेहद तीव्रता से उन्नति कर रहा है। 

परंतु, इसके चलते मौसम जनित समस्याऐं और जटिलताएं भी हावी रहती हैं। मीडिया के मुताबिक, स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि भारत की तकरीबन आधी कृषि भूमि असिंचित है, जहां पर सिंचाई काफी कम की जाती है। 

इन क्षेत्रों में गन्ना, कपास, सोयाबीन, धान और मक्का जैसी फसल बेहतर उत्पादन हेतु जून-सितंबर की वर्षा पर आश्रित रहती हैं।